आंसू रूठ गए हैं,अब वे उनकी आंखों में नहीं रहते ,
अब वे ख़ामोश रहते हैं , लफ्ज़ अब उनकी जुबां में नहीं रहते।
वो सब कुछ भूल बैठें है,अब हमें याद भी नहीं करते,
अब वो पत्थर दिल हो गए हैं, इश्क़ की बातें नहीं करते ।
वो मुस्कुराते तक नहीं हैं , चेहरे पर हंसी के फरिश्ते नहीं रहते,
पलकें आंखों का पहरा नहीं देती, आंखो में अब ख़्वाब नहीं रहते ।
भूख जिस्म से गायब है , अब खाने में कोई फ़रमाइश नहीं करते,
दिल धड़कना भूल गया है , सांस लेने के लिए मछली सा नहीं तड़पते ।
रूह अपनी मंजिल पर आ पहुंची है, प्राण जिस्म में नहीं रहते,
कल उनकी शादी है, मगर दूल्हे सफेद लिबास में नहीं रहते।
चार लोग उनको कंधे पर लायेंगे, जनाजे घोड़ी पर नहीं चलते ,
बाराती भी साथ होंगे, मगर नाचने के लिए आगे नहीं चलते।
जब दुल्हन मौत बनी हो , तो दूल्हे को घर नहीं रखते ,
ये शादी सच है दुनिया का, डोली बिछड़ने पर रोया नहीं करते।।
***आशीष रसीला***
