अब देखना ये है कि हमारा क्या होगा ?
हमने सादा दिल से बेवफ़ाई जो कि है..!
***आशीष रसीला***

अब देखना ये है कि हमारा क्या होगा ?
हमने सादा दिल से बेवफ़ाई जो कि है..!
***आशीष रसीला***
अब देखना ये है कि हमारा क्या होगा ?
हमने सादा दिल से बेवफ़ाई जो कि है..!
***आशीष रसीला***
अब देखना ये है कि हमारा क्या होगा ?
हमने सादा दिल से बेवफ़ाई जो कि है..!
***आशीष रसीला***
लगा कर सीने में आग वो धुवां बनकर बहता है ,
गुमशुदा बन उनके ख्यालों दिल कहीं खोया रहता है ।
उसने अपने हाथों से एक पाक रिश्ते को मार डाला,
ये ऐसा कत्ल है, की दिल सुली पर चड़ा रहता है ।
तन्हाइयों से भागता है , उसे ढूंढ़ता है हर जगह ,
दिल मानेना, हर जगह उसकी तलाश में रहता है।
लोग कहते हैं कि ढूंढे तो खुदा मिल जाए ,
कोई बताए की बिछड़ा यार किस गली में रहता है ।
है इतना दर्द की बता नहीं सकता ,
रोए बिना ही आंखों से पानी टपकता रहता है ।।
***आशीष रसीला***
मैं तुमको भूल जाऊंगा मगर याद तुम भी ना आना ,
तुम्हारे रास्ते तुम्हें बुलाते हैं तुम लौट कर ना आना।
मैं अब जैसा भी हूं मुझे मेरे हाल में रहने दो ,
मुझे याद रहेगा तेरे अफसानों में हमारा फ़साना ।
तुम हुई हो हक़ीक़त से रूबरू तो अब मलाल कैसा,
मुझे याद करके यूं मेरी तरह अपने दिल को तड़पाना ।
मैंने तुमको छोड़ कर तुम पर एक एहसान किया है ,
तुम मुझे छोड़कर एक एहसान मुझ पर भी जताना ।
मैं समझ चुका हूं, बस अब दिल को है समझाना,
लौट कर मैं भी ना आऊंगा लौट कर तुम भी ना आना ।।
***आशीष रसीला***
सर पर छत आसमान की,
चलने को ज़मीं जहान की ।
तुम जितना चाहो उड़ सकते हो,
अगर चाहत हो उड़ान की ।
तुम दिलों में रहना सिखो,
तो ज़रूरत नहीं मकान की ।
जब भी मिलो मुस्कुरा कर मिलो,
कोई किमत नहीं मुस्कान की।
खुद की ज़िन्दगी के लिए शुक्रगुजार बनो,
जब कोई सवारी दिखे श्मशान की ।
कायनात से मुहब्बत करो दुश्मनों से दोस्ती,
इंसानियत महकेगी जैसे ख़ुशबू हो लोबान की ।
खुदा को रखो दिल में ,
क्या ज़रूरत मन्दिर-मस्ज़िद आलीशान की ।।
***आशीष रसीला***
पत्थरों के शहर में शीशे का एक मकान ,
सब लोग अच्छे हैं यहां, बस बुरा है भगवान ।
काफिरों की बस्ती में किसी ने नेकी कर डाली,
मुमकिन है यहां कोई पढ़ता है कुरान ।।
***आशीष रसीला***
अब रो चुके बहुत, अब तो हंसना चाहिए ,
जो हुआ सो हुआ, अब आगे बढ़ना चाहिए ।
जब आयेगी मौत, तब देखा जाएगा ,
अभी ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह जीना चाहिए ।
एक पहाड़ से टकराकर हवा जख्मी हुई,
अब तूफ़ानों को भी अपना हुनर आजमाना चाहिए।
ये आसमां में चांद रोज निकलता है ,
ज़मीं पर भी एक चांद निकलना चाहिए।
सूरज तपता रहता है मेरे सर पर,
इन अंधेरों का भी कोई चिराग़ जलना चाहिए।
बहुत हूंआ इंतजार अब ज़ान निकलने को है,
अब खुदा को मुझ से आकर मिलना चाहिए ।।
***आशीष रसीला***
ये समंदर भी ना जाने कितनी नदियां खा गया,
आज परिंदो की पंचायत है, पेड़ फल खा गया।
हर अजीब बात पर ताज़्जुब नहीं किया करते ,
वो चोरों को सजा देगा जो चोरी का माल खा गया ।
सब कारवां यहां – वहां भटकते हैं ,
एक मुसाफ़िर मंजिलों का रास्ता खा गया ।
जब सोया तो आसमान में चांद – तारे सलामत थे,
जागे तो सूरज चांद- तारों की रोशनी खा गया ।
एक इल्ज़ाम मुझ पर ज़िदंगी ने लगाया है ,
मैं कुछ करता नहीं हूं यूं ही आधी उम्र खा गया ।।
***आशीष रसीला***
दिल टूट कर बिखरा था अब जोड़ लिया हमने,
इश्क़ हाल पूछने आया था मुस्कुरा दिया हमने ।
बस दूर से ही नज़रों ने उनको घर तक छोड़ा, ,
अब की बार उनका पीछा नहीं किया हमने ।
वो मेरी आखिरी भूल थी जो मुझको याद है ,
फिर उसके बाद इश्क़ नहीं किया हमने ।
क्या हुआ अगर मुहब्बत की अदालत में हम मुज़रीम ठहरे ,
मगर दोस्तों की अदालत में मुक़दमा जीत लिया हमने ।।
***आशीष रसीला***