झुका जब सर उसके कदमों में, तो झुकना अच्छा लगा ,
गुनाह कबूल कर रूह का यूं तड़पना अच्छा लगा ।
अब उसकी मर्ज़ी वो हमको माफ करे या सुली चढ़ाए ,
मगर माफ़ी मांग कर दिल हल्का हुआ तो अच्छा लगा ।
इश्क़ की राह में हम खुद ही बेवफा बन बैठें हैं ,
अब मुहब्बत का मतलब समझ आया तो अच्छा लगा ।
उसने बात भी कि, मगर एक ग़ैर की तरह ,
उसका यूं बेरूख़ी से पेश आना भी अच्छा लगा ।
उसको कहा था कि तुमसे कभी बात ना करेंगे,
मगर आज उनसे बात करके हमको अच्छा लगा।।
***आशीष रसीला***
