गुनाह होते हैं हर रोज़ , इन्हें करता कौन है ?
इन मासूम सी तितलियों के पर तोड़ता कौन है ?
कायनात के ज़र्रे – ज़र्रे में ख़ुदा मौजूद है अगर,
फिर इन कलियों को इस तरह से नोचता कौन है ?
अब हर शहर, हर गांव, हर गली में रहती है हैवानियत,
मगर इन बुतपरस्तीयों में उन्हें ढूंढता कौन है ?
बस मेरी मां, मेरी हमशीरा महफूज़ रहे ,
दूसरों की बहनों के बारे में सोचता कौन है ?
मैं शर्मिन्दा हूं आदमी जात के होने पर,
अगर यहां सब राम है, तो फिर रावण कौन है?
कहीं वो चांद, कहीं वो रूप की देवी, कहीं संसार की जननी है,
इतना मानते हो तो फिर, उनकी आबरू से खेलत कौन हैं?
हां माना के हम लड़के अच्छे होते हैं, मगर
फिर लड़कियों की इज्ज़त लूट इन्हें मारता कौन है ?
हम सब यहां धर्म के रखवाने बनकर बैठें हैं ,
फिर माली की हिफाज़त में कलियों को तोड़ता कौन है ?
इंसानियत शब्द है इंसानों का, ये हैवानियत करता कौन है ?
ख़ुदा हर जगह मौजूद है, तो गुनाह करता कौन है ?
गुनाह हर रोज होते हैं, इन्हें करता कौन है ?
***आशीष रसीला***

मार्मिक🙏
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हमारे देश की आधी आबादी इस भरम में शिकारी हो गयी है की स्त्री देह बहुत स्वादिष्ट होता है 😡😡😡😡😡
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बहुत सुंदर है आपके विचार,मेरा कीजिए प्रणाम स्वीकार.
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Ji bahut bahut shukriya 👍🙏
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