“मेरा शायराना सफर”
————————————-
हुस्न बैठा है राह में तारीफों का भिखारी बनकर ,
सादगी रहती है सवरने वालों की दुश्वारी बनकर ।
अमीरी दबी रहती है सोने – चांदी के बोझ नीचे,
ग़रीबी चलती है शोक से नीम का तिनका पहनकर ।।
***आशीष रसीला***
***आशीष रसीला***

“मेरा शायराना सफर”
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हुस्न बैठा है राह में तारीफों का भिखारी बनकर ,
सादगी रहती है सवरने वालों की दुश्वारी बनकर ।
अमीरी दबी रहती है सोने – चांदी के बोझ नीचे,
ग़रीबी चलती है शोक से नीम का तिनका पहनकर ।।
***आशीष रसीला***
***आशीष रसीला***