सुनो ज़रा खामोश होकर, ये ख़ामोशियां कुछ कहती हैं,
शायद वो इंसानियत है, जो हम सब में हमेशा रहती है।
ये गुनाहों का सिलसिला मजबूरियों से चलता है,
मां से पूछना, हर दरिंदे में मासूमियत रहती है।
मैंने देखा है लोगों को खुद की गलतियों से घुटते हुए,
माफ़ी मांगो तो, गुनाह कम होने की गुंजाइश रहती है।
माना के नफरतों का जहर भर रहा है दुनिया में,
तुम शुरुवात करो, तो एक दुनियां हम सब में रहती है।
मुहब्बत का दस्तूर सिर्फ महबूब तक मत रखो,
जिदंगी भर मुहब्बत सिर्फ मां -, बाप के दिल में रहती है।।
***आशीष रसीला***

Wow ❤️❤️
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Shukriya 🙏
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