**मशवरा**
किसी से मिल कर उसको रूह से छू देने का हुनर रखो,
अपनों को सुनो गौर से, अपनी बातों को फिर कभी रखो।
दिल पत्थर भी हो, तो क्या गम है ?
कम से कम ज़ुबां में फूलों की दुकां रखो।
अगर देर – सवेर महबूब के सजदे में जाना भी हो,
अपने एक हाथ में गज़ल की किताब जरूर रखो।
और ये मशवरा मुझे सूरज ने चांद की सोहबत में दिया था,
देखो मगर प्यार से, नज़रों में कोई पाप मत रखो।।
***आशीष रसीला***
