******कुछ भी नहीं******
तुम खुद को ना पूछो तो बहुत कुछ, पूछो तो तुम कुछ भी नहीं,
ये दुनिया एक डोंग करती है, इससे ज्यादा ये कुछ भी नहीं।
हाँ, माना कि गलतियां हम सब ने की हैं,
मगर हम माफी मांगे तो,”मसला” कुछ भी नही।
ये इश्क,प्यार, मुहब्बत सब एक दिखावा है,
जो भूखा हो एक अरसे से “चांद”, एक रोटी के सिवा कुछ भी नहीं।
जो हार गया हो खुद से खुद की जिद में,
किसी और से हारना तो कुछ भी नहीं।
हम सबके अंदर एक हमसे बेहतर इंसान रहता है,
खुद से बातें करें, तो अकेलापन कुछ भी नहीं।
इस ज़िन्दगी की खुद में भी एक अपनी ज़िन्दगी है,
तुम उसकी लाचारी देखो तो, हमारी लाचारी तो कुछ भी नहीं।
खुदखुशी एक जरिया है, हारे हुए लोगों दुनिया से निकालने का,
मौत आसान है तो जिंदगी की मुश्किलें तो कुछ भी नहीं।।
***आशीष रसीला***
