ज़िन्दगी की सच्चाई
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दुनियां में दौड़ लगी है, मगर जाना कहां है?
किसी को पता नहीं,
एक उम्र बीती है दौलत कमाने में, मगर खर्च करने बैठे हैं,
तो आज उम्र नहीं।
घर बनाने के लिए बेघर रहा ज़िन्दगी भर, जब आज घर मिला ,
तो परिवार नहीं।
उम्र के दरिचे से आख़िर सांस लेते हुए सोचता हूं, कि जिदंगी जिया भी हूं ?
सच कहूं तो मालूम नहीं।।
***आशीष रसीला***
