सुर्ख निगाहें होठों पर जैसे कोई गुलाब रखा हो,
वो सूरज का नूर जैसे अंधेरे में कोई दीप रखा हो।
उसकी तारीफ में मेरा हर लफ्ज़ तौहीन लगता है,
उसको देखे तो जैसे आईना संवर कर आईने के सामने रखा हो।।***आशीष रसीला***

सुर्ख निगाहें होठों पर जैसे कोई गुलाब रखा हो,
वो सूरज का नूर जैसे अंधेरे में कोई दीप रखा हो।
उसकी तारीफ में मेरा हर लफ्ज़ तौहीन लगता है,
उसको देखे तो जैसे आईना संवर कर आईने के सामने रखा हो।।***आशीष रसीला***
बहुत सुंदर रचना है ये आपकी।
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