अा मैं तेरे हुस्न को आज एक ग़ज़ल में कैद कर दूं,
तेरे अंग अंग को नज़्म बना,
अपने शायर होने का फ़र्ज़ अदा कर दूं।
कुछ दिनों से मेरी नज़्मों में तुझको लेकर थोड़ी मायूसी है,
अा मैं मेरी नज़्मों को तेरी सोहबत में रखकर जरा खुश कर दूं।
इससे पहले तेरा बदन ढल जाए बुढ़ापे के दस्तूर से,
अा मैं तुझे लिखकर एक फरिश्ता कर दूं।
तू गुलाब सी नाज़ुक मैं तुझे तितलियों की जुबान में लिखूं,
एक हरफ खत्म हुआ मैं पहले में कुछ फूल रख दूं।
तेरी खूबसूरती के पहरे पर खुदा खुद रहते है,
तुम कहो तो मैं तेरे चाहने वालों में एक नाम आशीष रख दूं।।***आशीष रसीला***

#सुनो
कभी यूँ लगे कि..
मैं कुछ नहीं
मेरे जज़्बात मेरे एहसास
मेरे सवाल मेरे जवाब
मेरी हसरतें मेरी अपेक्षाएँ
कुछ भी नहीं..
पर..सिर्फ तुम्हारा ख़याल
और दिल की आवाज़..
मैं..तुम ही तो हूँ
मेरे जज़्बात मेरे एहसास
मेरे सवाल मेरे जवाब
मेरी हसरतें मेरी अपेक्षाएँ
सिर्फ़..तुम हो….!💕
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