उसके आंखो के दरिचे में मजबूरी का महखाना था,
चेहरे पर सिलवटें थी भूख का कोई परवाना था।
सहम गया था मैं जिन्दगी की इस सच्चाई को देखकर,
एक रोज मुझे भी उस रास्ते से जाना था।।
***आशीष रसीला***

उसके आंखो के दरिचे में मजबूरी का महखाना था,
चेहरे पर सिलवटें थी भूख का कोई परवाना था।
सहम गया था मैं जिन्दगी की इस सच्चाई को देखकर,
एक रोज मुझे भी उस रास्ते से जाना था।।
***आशीष रसीला***