अर्ज़ किया है कि,
ये मेरे महबूब की कहानी है जरा सलीके से इसे पढ़ना,
हर नज़्म में मैंने उसे खुदा लिखा,तुम नजरें झुका कर उसे पढ़ना।
वो फूलों का शजर खुशबूओं का सैलाब है,
मेरी गुज़ारिश है कि तुम अपने पास कुछ फूल जरूर रखना।
वो अनजान लोगों से थोड़ा डर जाती है,
तुम अपने पास मेरी एक निशानी जरूर रखना।
तारीफों से उसके चहरे पर मुस्कराहट आती है,
तुम अपनी तरफ से कुछ लतीफे जरूर पढ़ना।
और मेरी गुजारिश है उन तमाम पढ़ने वालों से,
मेरा महबूब खुदा जैसा है तुम जिस्म नुमाइश की आस मत रखना।।
***आशीष रसीला***
