छुपता नहीं है सुरज बादलों के छुपाने से,
दिल साफ नहीं होता चहरे पर चन्दन लगाने से।
वो वादा करते थे कि हम कभी ना जाएंगे,
उनके भूझ गए दीए एक हवा का झोंका आने से।
लगी है पानी में आग तो भुझ ना सकेगी पानी के बुझाने से,
ये इश्क की प्यास है मेरे दोस्त, जो बुझ ना सकेगी किसी महखाने से।
कल की थी गुजारिश उसके घर के आइने से,
बसा ले तुझ में मुझे, वो कम से कम देखेंगी तो हमें किसी बहाने से।
वो चाहते थे कि मैं छोड़ चला जाऊं उनको किसी बहाने से,
हम भी चाहते थे कि वो कभी ना जाएं मेरे इसी बहाने से।
हम वाकिफ थे उनके हर एक झूठे फसाने से,
फिर भी हम सौ बार टूट जाते थे बस उनके एक बार मुस्कुराने से।
पता चला कि हर शक्श अमीर नहीं होता महलों में रहने से,
था वो धुवां हम बादल समझ बैठे, हमारी रो पड़ी आंखे आंखो में धुंआ चले जाने से।
अब क्या दोष दूं मैं मेरे हमसफ़र इस जमाने को भी,
जब मेरा साया भी मेरे पीछे छिप जाता है महज एक रोशनी के समाने आने से।
रूह नहीं मिलती जिस्म मिलने से,
प्यार नहीं मिलता सिर्फ दिल लगाने से,
रखना पड़ता है दिल को कांटों पर निकाल कर,
यूं ही खुदा नहीं मिलता मन्दिर में जाने से।।
***आशीष रसीला***

This touched my heart ❤️
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